अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥ चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥ सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥ जय गिरिजा पति https://shivchalisas.com